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खेल और मानसिक स्वास्थ्य: असफल होना भी है ठीक

By: Anjon Sarkar

On: Thursday, October 9, 2025 8:14 AM

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खेल और मानसिक स्वास्थ्य: असफल होना भी है ठीक

खेल का मैदान केवल जीत और हार का नहीं होता। यह एक ऐसी दुनिया है जहां भावनाएँ, दबाव और मानसिक संघर्ष भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं जितनी कि प्रदर्शन और परिणाम। जैसे-जैसे हम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के करीब पहुँच रहे हैं, यह समझना जरूरी है कि असफल होना कोई कमजोरी नहीं है। भारतीय खेल प्रेमियों के लिए यह याद रखना आवश्यक है कि कभी-कभी खिलाड़ी भी हमारे जैसी मानवीय सीमाओं से गुज़रते हैं। उदाहरण के लिए, पेरिस ओलंपिक्स में सत्विक और चिराग का पदक जीतने में असफल होना एक बड़ा झटका जरूर था, लेकिन यह मानवता और खेल की वास्तविकता का हिस्सा है।

मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करना जरूरी

हम अक्सर मानसिक स्वास्थ्य की गंभीरता को नजरअंदाज कर देते हैं। सामान्य बुखार या शारीरिक दर्द को हम स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन जब मानसिक अस्वस्थता की बात आती है, तो कई बार इसे कमजोरी माना जाता है। खेल की दुनिया में यह और भी कठोर है। जीतने पर ही खिलाड़ी को मजबूत माना जाता है और हारने पर मानसिक रूप से कमजोर। यह धारणा गलत है। खेल में भी असफलताएँ होती हैं, और यह असफलताएँ ही हमें बेहतर इंसान और बेहतर खिलाड़ी बनाती हैं।

नेरज चोपड़ा के टोक्यो ओलंपिक में अनुभव को ही लें। उनकी जीत के पीछे कितनी मानसिक तैयारी और दबाव था, यह शायद ही कोई समझ पाए। थोड़ा तनाव या घबराहट महसूस करना सामान्य है। यह हमें याद दिलाता है कि खिलाड़ी भी हमारी तरह ही संवेदनशील और मानवीय होते हैं।

खेल और मानवता: क्या असली लक्ष्य केवल जीत है?

सचिन तेंदुलकर ने एक बार कहा था, “खेल का असली मकसद केवल रन बनाना या विकेट लेना नहीं है। मेरे पिता ने हमेशा मुझसे कहा कि वह चाहते हैं कि मैं एक अच्छा इंसान बनूँ। यही असली सफलता है।” इसी तरह, सौरव गांगुली ने जोड़ा, “जब तक आप असफल नहीं होंगे, आप सफलता की असली कीमत नहीं समझ पाएंगे। हर असफलता एक सीढ़ी है जो आपको बेहतर बनाती है।” ये महान खिलाड़ी हमें यह सिखाते हैं कि खेल केवल परिणाम का नाम नहीं, बल्कि चरित्र, धैर्य और मानसिक मजबूती का नाम है।

उदाहरण और संवाद: मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता

जब विश्व स्तर के खिलाड़ी अपनी मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के बारे में खुलकर बात करते हैं, तब समाज में जागरूकता बढ़ती है। विराट कोहली जैसे खिलाड़ी जब मानसिक स्वास्थ्य पर खुलते हैं, तो लोग इसे गंभीरता से लेते हैं। इसी तरह, सिमोन बाइल्स ने टोक्यो ओलंपिक में अपने अनुभव साझा करके दुनिया को यह संदेश दिया कि मानसिक संघर्ष को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमारी खुद की मणु भाकर ने भी पेरिस और टोक्यो के अनुभव साझा करके इस चर्चा में योगदान दिया।

हमारे लिए जरूरी है कि हम खेल और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर खुलकर बातचीत करें। लेख, संवाद और चर्चा बढ़ाएँ। हमें यह समझना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य केवल खिलाड़ी का नहीं, बल्कि पूरे समाज का विषय है। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस सिर्फ एक शुरुआत है, लेकिन इसे गंभीरता से लेना और निरंतर चर्चा करना बेहद आवश्यक है।

निष्कर्ष

खेल में असफल होना या मानसिक संघर्ष का सामना करना कोई कमजोरी नहीं है। यह हमारे मानव होने का हिस्सा है। खिलाड़ियों को भी हमारी तरह संवेदनशीलता और भावनाओं के साथ जूझना पड़ता है। हमें उन्हें समझना चाहिए, उनका समर्थन करना चाहिए और असफलताओं को सीखने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। खेल केवल जीत और हार का नाम नहीं, बल्कि अनुभव, धैर्य और मानवता का प्रतीक है।

Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी गंभीर स्थिति में हमेशा योग्य विशेषज्ञ से परामर्श लेना आवश्यक है।

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