
गुजरात आज सिर्फ एक राज्य नहीं, बल्कि भारत के विकास का प्रतीक बन चुका है। 24 सालों की यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली नीतियों और मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के मार्गदर्शन में गुजरात ने औद्योगिक जगत में वह मुकाम हासिल किया है, जिसका सपना कभी पूरा करना असंभव लगता था। खासकर ऑटोमोबाइल सेक्टर में हुई 22 गुना वृद्धि ने यह साबित कर दिया है कि गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री (Gujarat Auto Industry) अब भारत की आर्थिक रीढ़ बन चुकी है।
गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री: विकास सप्ताह में चमकता सितारा
7 से 15 अक्टूबर तक मनाए जा रहे ‘विकास सप्ताह’ के दौरान 10 अक्टूबर को ‘उद्योग-उद्यमिता दिवस’ के रूप में मनाया गया। इस मौके पर गुजरात ने अपनी ऑटो इंडस्ट्री की शानदार उपलब्धियों से देश को गर्व का एक और कारण दिया। कभी ₹3,200 करोड़ के उत्पादन से शुरुआत करने वाला यह राज्य अब ₹71,425 करोड़ के ऑटोमोटिव उत्पादन तक पहुँच चुका है। यह आंकड़ा सिर्फ संख्याओं का नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में गुजरात के अभूतपूर्व योगदान का प्रमाण है।
2008–09 से लेकर 2022–23 तक की इस 15 साल की यात्रा ने गुजरात को भारत का सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल हब बना दिया है। मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स, हीरो मोटोकॉर्प और होंडा जैसी दिग्गज कंपनियाँ अब गुजरात की धरती से अपने वाहनों को दुनिया के 100 से ज़्यादा देशों तक पहुंचा रही हैं।
गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री: ‘मेक इन इंडिया’ का सच्चा उदाहरण
2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत की थी, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि गुजरात इस विज़न को इतनी गहराई से अपनाएगा। 2015–16 में जहाँ राज्य का वाहन निर्माण क्षेत्र ₹5,836 करोड़ का था, वहीं 2022–23 में यह 12 गुना बढ़कर ₹71,425 करोड़ तक पहुँच गया।
इस अद्भुत प्रगति ने यह साबित किया है कि गुजरात न केवल उद्योगों के लिए निवेश-अनुकूल माहौल प्रदान करता है, बल्कि यह नवाचार और आत्मनिर्भरता का केंद्र भी बन गया है। गुजरात की नीति पारदर्शी है, उद्योगों को प्रोत्साहन देने वाली है और सबसे महत्वपूर्ण, उसमें विकास की निरंतरता है।

गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री: कोरोना के बाद भी मज़बूत उभरती ताकत
कोविड-19 महामारी के बाद जब दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं डगमगा गईं, तब भी गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री ने हार नहीं मानी। 2020–21 में ₹34,107 करोड़ का उत्पादन था, जो सिर्फ दो साल में बढ़कर ₹71,425 करोड़ हो गया। यह दोगुना नहीं, बल्कि एक अद्भुत पुनरुत्थान की कहानी है।
2018–19 के ₹27,049 करोड़ की तुलना में यह लगभग तीन गुना बढ़ोतरी है — यह दिखाता है कि गुजरात में उद्योग सिर्फ जीवित नहीं हैं, बल्कि निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रहे हैं।
गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री: ग्लोबल एक्सपोर्ट हब की नई पहचान
गुजरात का भूगोल और उसका मजबूत पोर्ट नेटवर्क उसे वैश्विक निर्यात का सबसे भरोसेमंद केंद्र बनाता है। वित्त वर्ष 2024–25 में राज्य ने मोटर वाहन और ऑटो कंपोनेंट्स के रूप में ₹13,799.79 करोड़ का निर्यात किया। इसमें 1,77,924 वाहनों को 102 देशों में भेजा गया — जिनमें दक्षिण अफ्रीका, जापान, सऊदी अरब, चिली, यूएई, मेक्सिको और कोलंबिया जैसे देश शामिल हैं।
यह पिछले वर्ष की तुलना में 31.54% की जबरदस्त वृद्धि है। गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री अब “मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड” की सोच को साकार कर रही है।
साणंद और मांडल-बीचाराजी: गुजरात की ऑटोमोबाइल राजधानी
गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री के केंद्र में हैं दो खास क्षेत्र — साणंद और मांडल-बीचाराजी (Sanand & Mandal-Becharaji)। ये दोनों क्षेत्र आज भारत के सबसे उन्नत औद्योगिक निवेश केंद्रों में गिने जाते हैं।
साणंद में ऑटो कंपोनेंट्स का मजबूत इकोसिस्टम तैयार किया गया है, जहाँ कई घरेलू और विदेशी कंपनियाँ काम कर रही हैं। वहीं मांडल-बीचाराजी ने वैश्विक ऑटोमोबाइल ब्रांड्स को आकर्षित किया है, जो यहाँ से अपने वाहनों का उत्पादन और निर्यात कर रहे हैं। यह क्षेत्र न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया के लिए एक रोल मॉडल बन चुका है।
गुजरात की ऑटो इंडस्ट्री: नवाचार और आत्मनिर्भरता का प्रतीक
गुजरात की यह यात्रा दिखाती है कि जब नीति, नीयत और निपुणता एक साथ आती है, तो असंभव भी संभव हो जाता है। यह राज्य भारत के उस भविष्य का प्रतीक बन गया है जहाँ उद्योग केवल आर्थिक विकास का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की शक्ति भी हैं।
‘मेक इन इंडिया’ का विज़न अब सिर्फ एक नारा नहीं रहा — गुजरात ने इसे जीकर दिखाया है। आज राज्य का हर कारखाना, हर निर्यात, और हर नवाचार इस बात की गवाही देता है कि भारत अब दुनिया के लिए उत्पादन का केंद्र बन चुका है।
Disclaimer: इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी और जागरूकता प्रदान करना है। इसमें प्रस्तुत आँकड़े और तथ्य आधिकारिक रिपोर्टों और प्रकाशित स्रोतों पर आधारित हैं। पाठकों को सलाह दी जाती है कि किसी भी निवेश या औद्योगिक निर्णय से पहले संबंधित प्राधिकरणों या विशेषज्ञों से परामर्श लें।